डॉ . बाबासाहेब आंबेडकर का भारत के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है । वे एक अर्थशास्त्री , समाजशास्त्री , शिक्षविद और विद्वान अधिवक्ता भी थे । उन्होंने अपने जीवन काल में दर्जनों किताबें लिखीं । वे जवाहरलाल नेहरू मंत्रिमंडल में कानून मंत्री थे। वे मजदूरों के हितेषी थे और मूकनायक , बहिष्कृत भारत , समता , जनता , प्रबुद्ध भारत आदि अखबारों के संपादक और पत्रकार थे । बाबा साहेब देश के पहले कानून मंत्री बने। बाबा साहेब ने अनेक कानून सुधार किये । 1947 में आजादी मिली तो देश के लिये संविधान लिखने की जरूरत थी । और संविधान बनाने के लिये वैचारिक और काबिल आदमी की जरूरत थी। ऐसे में डॉ. बाबा साहेब को चुना गया । संविधान का मतलब हिंदू समाज में ऊंच और नीच की खाई को खत्म करके देश में एक आदर्श समाज की स्थापना करानी थी । देश की महिलाओं पर बडे पैमाने पर धर्म के बंधन लगाये गये थे । उन्हें किसी भी तरह की आजादी नहीं थी , और ना ही कोई अधिकार । बाबा साहेब ने महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके अधिकार के बारे में सोचते हुए हिंदू कोड बिल तैयार किया। उनका मानना था कि जाति व्यवस्था में महिलाओं को दबाकर रखा जाता है । इस लिए उनकी चिंता थी कि हिंदू कोड बिल को ऐसा बनाया जाये, जिसमें महिलाओं को बराबर का अधिकार मिल जाये । बाबा साहेब को केवल किसी विशेष वर्ग या जाति की महिलाओ की चिंता नहीं थी । वे सभी जाति एवं वर्ग की महिलाओं के हित चाहते थे। बाबा साहेब हिन्दू कोड बिल को जल्द से जल्द लाना चाहते थे ।
बाबा साहेब ने हिंदू कोड बिल को तैयार करके जब 1951 को संसद में पेश किया । उस समय पुरुष और महिलाओं को तलाक का अधिकार नहीं था। पुरुष को एक से ज्यादा शादी करने की आजादी थी ।शादी के लिए उम्र की भी कोई मर्यादा नही थी । विधवा को संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं था , जब कि भाई को आधा हिस्सा प्राप्त होता था । परंतु हिंदू कोड बिल में बाबा साहेब ने महिलाओं के लिये समान और बराबरी के अधिकार तय किए थे।
हिंदू कोड बिल के तहत पिता कि संपत्ति में बेटी को समान अधिकार , विवाहित पुरुष को एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबंध,महिलाओं को भी तलाक का अधिकार शामिल था। अंतर्जातीय विवाह को मान्यता । इसके अलावा और भी कई समान अधिकार के बारे में लिखा गया था इस बिल में बहुत सी ऐसी बातें थीं,जिससे हिंदू धर्म से वे कुरीतियां दूर होती, जिन्हे परंपरा के नाम पर कट्टरपंथी जिंदा रखना चाहते थे । हिंदू कोड बिल लागू होता तो महिलाएं आजाद होती । बाबा साहेब सभी तरह के भेदभाव से ऊपर उठ कर सामाजिक बदलाव और समानता लाना चाहते थे। 9 एप्रिल 1948 को हिंदू कोड बिल को सिलेक्ट कमिटी के पास भेज दिया गया । बाद में बाबा साहेब ने हिंदू कोड बिल को संसद में 1951 में पेश किया । इस बिल का संसद के अंदर और बाहर विरोध होने लगा। केवल अज्ञान के कारण राजनेताओं के बहकावे में आकर दिल्ली में संसद के सामने और बाबा साहेब के बंगले के सामने महिलाओं ने विरोध करना शूरू कर दिया। संसद के तमाम लोग बाबा साहेब के खिलाफ हो गये । अखिल भारतीय रामराज्य परिषद की स्थापना करनेवाले करपात्री जी का कहना था कि यह बिल हिंदू हिंदू धर्म में हस्तक्षेप है और हिन्दू रीति रिवाज,परंपराओं के साथ धर्मशास्त्र के विरुद्ध है। इसी कारण संसद में इस बिल को लेके 3 दिन तक लगातर चर्चा चलती रही थी । संसद में जहां जनसंघ समेत काँग्रेस का हिंदूवादी घडा इसका जम कर विरोध कर रहा था तो संसद के बाहर हरिहरा नंद सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में प्रदर्शन चल रहे थे। संसद में तीखी बहस शूरु हो गई थी । बाबा साहेब पर जातिगत टिप्पणी की जा रही थी। टिप्पणी में लिखे जा रहे कुछ शब्द ऐसे भी थे , ''एक अछूत को इन मामलों में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है , जो साधारण ब्राह्मणों के लिये सुरक्षित है "।
पंतप्रधान जवाहरलाल नेहरू , दुर्गाबाई देशमुख तथा न्यायमूर्ति गजेंद्रकर और गाडगीळ ने इस कानून का समर्थन किया । वे भलीभांती जान चुके थे दूरदृष्टी यह महत्वपूर्ण कानून हिंदू कोड बिल है । भविष्य में बनने वाला कोई भी कानून हिंदू कोड बिल की बराबरी नहीं कर सकता । यह एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी कदम की पहल थी । परंतु संसद के सदस्य इसके खिलाफ थे। और नेहरू भी मजबूर हो गये । धार्मिक कट्टर पंथियों और जात पात के दबाव में आकर तत्कालीन पंतप्रधान जवाहरलाल नेहरू ने इसे स्थगित कर दिया । इस कारण बाबा साहेब ने व्यथित होकर अपनी यह निराशा व्यक्त की कि " जब मेरे बेटे का देहांत हुआ गया तब मुझे उतना दुःख नहीं हुआ था, जितना मुझे हिन्दू कोड बिल स्थगित करने से हुआ है "। बात जब बन नहीं रही थी तब डॉ बाबा साहेब ने प्रस्ताव दिया कि इस पर आम सहमति से आगे बढा जाये।उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि समान नागरिक कानून बनेगा तभी इसे जबरन लोगों पर लादा नही जायेगा । महात्मा गांधी के आदर्श के अनुसार छुआछूत खत्म करने और महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में आगे लाने के प्रयासों को आगे बढाना इस बिल के अहम प्रावधान थे ।
मुस्लिम लीग के सदस्यों ने इस कानून का प्रतिरोध करते हुए कहा , ' उनके यहां शादी , तलाक आदि बातों पर फैसले शरियत के मुताबिक किये जाते हैं, और जो मुद्दे बहुसंख्यकों पर लागू होते हैं उसे अल्पसंख्यक पर लागू नहीं किया जा सकता। परंतु आंबेडकर , कन्हैयालाल माणिक, लाल मुंशी और कृष्णनस्वामी अय्यर ने इसकी पैरवी की । इन सभी का मानना था कि कोई व्यक्तिगत कानून देश को आगे नहीं ले जाएगा। हिंदू बिल पारित करवाने को लेकर बाबा साहेब काफी चिंतित थे । आखिरी समय में वैचारिक तौर पर लेकर जवाहर लाल नेहरू ने हिंदू कोड बिल को चार हिस्सों में बांट दिया । समाज की हर महिला के लिये यह कानून बहुत जरुरी था । और यह भी उतना ही सच था भविष्य में बनने वाले कोई कानून इसकी बराबरी नहीं कर सकता था । परंतु विरोध के बाद और सरकार में अपना प्रभाव घटने से डॉ . बाबा साहेब ने 1951 में कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया ।
बाद में कानून मंत्री बने हरिभाऊ। उनके प्रयासों से 1955 - 56 में यह बिल मंजूर हो गया। हिंदू कोड बिल की वजह से ही महिलाओं को बहुत से अधिकार मिल पाए , सुधार हो पाये। परंतु 98 प्रतिशत महिलाएं संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के बारे में जागरूक नहीं है। सोचनेवाली बात यह है कि हमने अपने वैचारिकता को नष्ट कर दिया है। बाबा साहेब जैसा इतना बडा दार्शनिक इंसान, जिसने अपने जीवन काल में वेद , कुरान , बायबल को पढ़ा। और तमाम पंडितों और विद्वानों से कहीं ज्यादा पढा है । बाबासाहेब का कहना था कि जाति के साथ जनतंत्र नहीं चल सकता ..
जिसके पास देश बदलने का नजरिया था , ऐसे राष्ट्रीय नेता को जाति के चोल में लपेटकर जाति का नेता बना दिया ।
✍ हेमा म्हस्के