हेमलता म्हस्के
कोरो ना के भयावह दौर में सबसे अधिक दयनीय हालत प्रवासी मजदूरों की है लेकिन अब उनके मुद्दे उठे हैं तो उनकी सुध लेने के लिए सरकार सक्रिय हुई है और समाज भी उनको मदद पहुंचाने की कोशिश में जुट गया है। इसी दौर में सबसे अधिक खराब स्थिति सड़कों पर पल रहे कुत्ते,बिल्लियां और बंदरों सहित अन्य अनेक पालतू पशुओं की है जिनके लिए लॉक डाउन का तीसरा दौर बहुत दुखद गुजर रहा है। लॉक डाउन के पहले और दूसरे दौर में सड़कों पर कुत्ते इंतजार में रहते थे कि कोई उन्हें कुछ खिला जाएगा लेकिन अब उनको अपने मानवीय समाज से निराशा ही मिल रही है । अब तो वे हर आते-जाते इंसानों के पीछे पीछे जाने को भी मजबूर दिखाई पड़ रहे हैं। जिनके पीछे वे जाते हैं, उनमें एकाध ही उन्हें कुछ खाने को दे देते हैं बाकियों में ज्यादातर उसे हिकारत की नजर से देखते हुए डांट कर भगा देते हैं। इन दिनों भूखे प्यासे कुत्तों की हालत यह हो गई है कि वे भूखे प्यासे होने कि वजह से भौंक भी नहीं पाते। रातों को इन दिनों इनके रोने की करुण आवाज सुनाई पड़ती है। अब लॉक डाउन में रातों को उनकी कौन परवाह करे। कुत्तों को भी रातों को कोई आता जाता नहीं दिखता। जबकि मौजूदा संकट के लिए वे किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं, बावजूद उनके साथ प्रेम पूर्ण व्यवहार नहीं किया जा रहा है। सरकार के अमले और समाज के लोग भी बेखबर हैं उनसे। इस समय मनुष्य को मनुष्य के जरिए सभी तरह के भेदभाव से ऊपर उठ कर मदद करने की अनेक अनुकरणीय घटनाएं घट चुकी हैं,घट रही हैं,लेकिन सृष्टि के प्रारंभिक दौर से ही मनुष्य समाज के लिए त्याग और कुर्बानियां की अनेक गाथा रचने वाले इन बेजुबान पशुओं के लिए हमारे दिलों में प्रेम बढ़ना तो दूर,पैदा तक नहीं होता। उल्टे इनके प्रति क्रूरता ही इतनी बढ़ गई है कि इससे बचाव के लिए कानून बनाने पड़े। दुखद है कि ये कानून भी इतने ढीले ढाले हैं कि क्रूरता बरतने वाले पर रंच मात्र का असर नहीं पड़ता। सामान्य दिनों में तो इन पर क्रूरता होती ही रही है। मौजूदा समय में जब मनुष्य खुद अपनी जान बचाने के लिए जुटा है तो ऐसे समय में हमने इन बेजुबान पशुओं को बेसहारा छोड़ दिया है।
जब कोरो ना का प्रकोप नहीं था, तब शहरी क्षेत्रों में दुकानें, होटल और ढाबे खुले रहते थे। साथ ही लोगों की आवाजाही भी लगी रहती थी । लावारिस कुत्तों को इन जगहों पर अक्सर खाने को मिल जाया करता था। मांस की दुकानों पर भी उन्हें पर्याप्त खुराक मिल जाती थी। लोगों की आवाजाही लगी रहती थी तो उनमें भी कुछ लोगों के मन में करुणा जाग जाती थी और वे इनका ख्याल रख लेते थे । पर अब तो लॉक डाउन दौरान लोगों ने अपनी करुणा के दरवाजे बंद कर दिए हैं। इसके लिए केवल लोग ही जिम्मेदार नहीं बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की अनुदार प्रवृति भी जिम्मेदार है। ज्यादातर प्रशासनिक अधिकारियों में बेजुबान पशुओं के प्रति अपने उत्तरदायित्व को लेकर कोई जागृति नहीं है। उल्लेखनीय है कि पशु क्रूरता निवारण के लिए कानून बने हुए हैं। इस कानून के तहत भारतीय पशु कल्याण बोर्ड का गठन किया गया है। इस बोर्ड का कार्य पशु कल्याण से संबंधित कानूनों का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करना है। और साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों को इस संबंध में परामर्श भी देता है। बोर्ड का मकसद मनुष्यों को छोड़कर सभी प्रकार के जीवों को पीड़ा और कठिनाइयों से बचाव करना है। इसके लिए बोर्ड का कार्य पशु प्रेमियों को बेजुबानों के लिए चिकित्सा सहायता देने के साथ वित्तीय मदद और अन्य तरीके से पिंजरा,शरण गाहों और पशु शेल्टर के निर्माण के साथ मानवीय समाज को इनके प्रति अपने उत्तरदायित्व का बोध कराना है, ताकि बेजुबान पशुओं और पक्षियों को उस दौरान शरण मिल सके, जब वे अधिक उम्र के हो जाते हैं, बेकार हो जाते हैं । लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि 28 संवेदनशील सदस्यों के होते हुए भी बोर्ड की ओर से इन बेजुबान पशुओं और पक्षियों के लिए कोई व्यापक कार्यक्रम नहीं हो पाता है। ऐसा कुछ नियमित तौर पर होता रहता तो इन बेजुबान पशुओं के कल्याण के लिए लोगों के दिलों में करुणा का विस्तार होता। आवारा पशुओं गाय, कुत्ते, बिल्लियां और बंदर की समस्या देश भर में हर जगह व्याप्त है। सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे देश में इनकी कोई कद्र नहीं है और इस कारण वे अनेक समस्याओं से जूझते रहते हैं। बोर्ड की ओर से सभी राज्यों और केंद्र प्रशासित राज्यों को सलाह दी गई है कि इन बेजुबानों के लिए भोजन और जल उपलब्ध करवाना सुनिश्चित करें । देखा यह जा रहा है कि ये बातें सिर्फ कानून की किताबों तक सीमित है। देश भर में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों और संबंधित अधिकारियों से बेजुबान पशुओं के लिए लॉक डाउन के दौरान अनुकूल अवसर प्रदान करने की अपील की गई है,लेकिन कारुणिक जागृति के अभाव में इन दिनों बेजुबान पशु सबसे ज्यादा बेसहारा हो गए हैं। इनके लिए प्यार बांटने वाले मानवीय समाज में थोड़ा सा भी प्यार और तवज्जो मयस्सर नहीं है। यह मानवीय समाज के लिए सचमुच शर्मनाक बात है
ऐसा नहीं है कि मानवीय समाज में इन बेजुबानों के प्रति करुणा नहीं है करुणा है लेकिन लॉक डाउन के दौरान इन बेजुबान पशुओं को प्यार करने वालों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पशु प्रेमियों को इन जानवरों की मदद करने पर काफी रोक टोक की जा रही है। दरअसल लॉक डाउन को सफल बनाने वाले अधिकारियों और पुलिसकर्मियों की चिंता केवल मनुष्य समाज को ही करो ना से बचाने की है। उनके एजेंडे में इन बेजुबानों को बचाने की बात ही नहीं है । जबकि स्वयं प्रधानमंत्री ने भी मौजूदा समय में बेसहारा जानवरों की सुध लेने की अपील की है, लेकिन बहुतों के मन में यह भय समाया हुआ है कि सड़कों पर घूमने वाले बेजुबान पशु भी करो ना के संवाहक हो सकते हैं। इस भय और आशंका का यह आलम है कि शहरी क्षेत्रों में इन पर लोगों की क्रूरता बढ़ती जा रही है, जबकि डॉक्टरों का कहना है कि संक्रमण में इन जानवरों का कोई योगदान नहीं है। यह भी सच है कि एक तरफ देश भर में लाखों लोगों के मन में उनके प्रति करुणा भी बढ़ रही है और उनकी सक्रियता की वजह से पशु प्रेम का आंदोलन भी धीरे धीरे व्यापक होता जा रहा है। देश में नोएडा, बंगलुरु, कोलकाता, बड़ोदरा , अहमदाबाद , पुणे, हैदराबाद,पटना सहित अनेक शहरों में इन बेजुबान और बेसहारा पशुओं की मदद के लिए अनेक लोग सामने आए हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि इस मामले में मीडिया की भूमिका बहुत अनुकूल नहीं रहती है अगर वह पशु प्रेमियों की मदद करते होते तो बेजुबान पशुओं को कल्याण के लिए अब तक बेहतर माहौल बन गया होता। मीडिया के लोग इसके बजाय इन पशुओं के खिलाफ ही अभियान चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। मौजूदा लॉक डाउन के दौरान देश भर में पशुओं के कल्याण के लिए नेतृत्व कर रही और संघर्ष कर रही पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के अनुभवों से हम जन सकते हैं कि बेजुबान पशुओं के प्रति सरकारी रवैया कैसा है। मेनका गांधी के मुताबिक हरियाणा के मुख्यमंत्री ने गहरी दिलचस्पी ली। वे कहती हैं कि गलियों में पुलिसकर्मियों का रवैया जानवरों को खाना खिलाने वाले को बाधा पहुंचाने वाला रहा है। वे खाना खिलाने वाले पशु प्रेमियों से गाली गलोज तक उतर आते हैं। ऐसा अहमदाबाद, हैदराबाद और ठाणे में ज्यादा दिखा। झारखंड में बाहर निकले लोगों से पैसे लेने के लिए पुलिस सादे कपड़े में सड़क पर खड़ी हो जाती थी और जिनके पास "पास" होता वे अगर पैसे नहीं देते तो उन्हें गिरफ्तार कर लेती। ऐसे एक मामले में उन्होंने एक एसपी से बात की तो यह सिलसिला रुका। उनके मुताबिक बेजुबान पशुओं के मामले में एसएचओ से लेकर डीएसपी और कमिश्नर से लेकर डीजीपी तक सभी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का व्यवहार अच्छा था। इनमें से दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु के कमिश्नर वाकई शानदार थे। इन अधिकारियों ने जानवरों को खाना खिलाने वाले पशु प्रेमियों की मदद की।
एक और बात उल्लेखनीय है कि एक तरफ इन बेजुबान पशुओं की मदद करने वालों कि संख्या बढ़ रही है, वहीं इसी के साथ इन पशुओं की मदद करने वाले प्रेमियों के साथ दुर्व्यवहार करने वालों की संख्या बढ़ रही है। खास कर शहरों मै रेजिडेंट वेलफेयर समितियां बाधा बन कर खड़ी हो रही है। ये समितियां अपार्टमेंटों से सदियों से मनुष्य के साथ जीवन जीते अा रहे इन बेजुबान पशुओं को खदेड़ रही हैं और साथ ही इन पशुओं के प्रति प्रेम करने वालों को भी प्रताड़ित कर रही हैं। यह सचमुच दुखद है। मनुष्य के बसेरों से इनको दूर किया जा रहा है और इनको खाने के लिए भी वे नहीं मिल रहे, जिनको वे चाहते हैं। हमे सभ्य और संवेदनशील बने रहने के लिए इनको अपने पास रखने होंगें और इनके लिए थोड़ा सा प्यार पैदा करना होगा। नहीं तो हम प्रकृति कि व्यवस्था के विरोधी हो जाएंगे जिनके भी नतीजे घातक हो सकते हैं।
हेमलता म्हस्के
पुणे
बहुत लाचार हो गए बेजुबान पशु, कचरों में भी खाने को कुछ नहीं मिलते- हेमलता म्हस्के